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लेखनी कहानी -08-Sep-2022

"रमन, यह सब क्या है? मुझे तो यकीन ही नहीं आ रहा कि तुम ऐसा भी सोच सकते हो।" अमर ने जब रमन के हाथ में बोतल देखी तो नाराज़ हो कर पुछा।


"तो और क्या करूं मैं? उसकी हिम्मत भी कैसे हुई मुझे इंकार करने की। आज तक बाबा ने मुझे वो दिलवाया जो मुझे पसंद आ जाए। लेकिन मान्यता समझती क्या है खुद को। महेश्वरी कंस्ट्रक्शन के एकलौते वारिस के प्यार को एक ही पल में ठुकरा दिया।"  रमन ने आंखों में अंगार भरते हुए कहा।


अगर तुमने तय कर ही लिया है तो मैं तुम्हें नहीं रोकूंगा लेकिन उससे पहले मैं तुम्हें कुछ दिखाना चाहता हूं। अमर ने रमन पर असर ना पड़ता देख बात बदलते हुए कहा तो रमन अमर के साथ बाइक पर सवार होकर चुपचाप चल पड़ा। कुछ देर बाद दोनों एक आश्रम में पहुंच गए। मन में कुछ सवाल लिए रमन अमर के पीछे पीछे चलता रहा। अचानक रमन किसी लड़की से टकरा गया और उसके चेहरे पर नज़र पड़ते ही भयभीत हो कर पीछे हट गया। उसका चेहरा बुरी तरह से जला हुआ था।


"जब इसका चेहरा देखकर ही तुम्हें इतना बुरा लग रहा है तो सोचो जिन लड़कियों पर तेज़ाब फेंका जाता है उन्हें कैसा लगता होगा। अपने प्यार को खो कर तुम्हारी यह हालत है तो सोचो आज गुस्से में जिसका चेहरा खराब करने चले थे। कभी सोचा है इसके बाद उसका क्या होगा।"  अमर ने भावुक हो कर कहा तो रमन को अपनी ग़लती का एहसास हो गया।


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20 Comments

जी बेहद ही उम्दा रचना।

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Pallavi

10-Sep-2022 11:11 PM

Nice post 👌

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Chirag chirag

10-Sep-2022 06:50 PM

Very nice

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